________________
७६
जैन-दर्शन
पहले नमस्कार करते हैं। दीक्षा का छेद होने पर अधिक दिन का 'दीक्षित भी थोडे दिन का दीक्षित हो जाता है । यह उसके अपराध का दंड है। .
परिहार--एक दिन, एक पक्ष या महीना यांदि किसी मर्यादा • तक संघ से अलग करदेना परिहार है । संघ से अलग हुआ मुनि संघ से दूर बैठता है, वह सवको नमस्कार करता है, उसको कोई नहीं करता तथा वह उलटी पीछी रखता है।
स्थापना-फिर से दीक्षा देना स्थापना है । इस प्रकार प्रायश्चित्त के नौ भेद बतलाये।
विनय नम्रतासे रह कर विनय करना विनय है । इसके चार भेद हैं। ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, और उपचारविनय ।
ज्ञानविनय-आदर पूर्वक आलस छोडकर देश काल की विशुद्धता पूर्वक मोक्षके लिये ज्ञानका अभ्यास करना, पठन पाठन स्मरण आदि करना ज्ञान विनय है।
दर्शनविनय--देव, शास्त्र, गुरु या पदार्थों के श्रद्धान में किसी प्रकार को शंका नहीं करना, निमेल सम्यग्दर्शनका पालन करना दर्शन विनय है।
चारित्रविनय-निर्मल चारित्र का पालन करना, हृदयमें अत्यंत प्रसन्न होकर चारित्रका अनुष्ठान करना, उसको प्रणाम करना, हाथ जोडना आदि चारित्र विनय है ।