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जैन-दर्शन
सेवन करने के लिये गुरुकुल में निवास करना ब्रह्मचर्य है जो पुरुष पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना है उसके हिंसा आदि कोई भी दोप नहीं लगता है तथा अनेक गुण रूप संपदाएं प्राप्त होती हैं । जो पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता वह सदा काल पापों से लिप्त बना रहता है तथा वह सदा प्राण नाश की ओर दौड़ता रहता है। यही समग्रकर मुनिराज सदाकाल पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं ।
इस प्रकार इन धर्मोको पालन करने से याते हुए धर्म रुक जाते हैं और संचित कर्मोंका नाश होता है । ये दशधर्म गुप्ति समितियों के पालन करने में भी सहायक होते हैं और या कही जाने वाली धनुप्रेक्षाओं के चितवन करने में भी सहायक होते हैं ।
अनुप्रेक्षा
बार बार चितवन करने को अनुप्रेक्षा कहते हैं। ऐसी धनुप्रेना बारह हैं । अनित्य, शरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, श्रशुचि, श्राव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म । इस प्रकार इन बारह तत्त्वोंका यथा योग्य नाम के अनुसार चितवन करना अनुप्रेक्षा है ।
श्रनित्यानुप्रेक्षा- इस संसार में जितने शरीर, इन्द्रिय, विषय, भोग आदि पदार्थ हैं वे सब पानी के बुदबुदा के समान शीघ्र नाश होने वाले अनित्य हैं | सदा रहने वाले नित्य पदार्थ इस संसार में कुछ भी नहीं हैं । यदि नित्य है तो श्रात्मा के ज्ञान दर्शन रूप