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জন-মান करने से ही अनेक ऋद्धियां प्राप्त होती हैं। तपस्वी लोग जहां जहां विहार करते हैं वह तीर्थ कहलाता है। जो तपश्चरण नहीं करताः उसमें कोई गुण नहीं ठहर सकते और न उसका संसार ही छूट सकता है ! यही समझकर मुनिराज सदाकाल तपश्चरण में लगे रहते हैं। - उत्तम त्याग- समस्त प्रकार के परिग्रहों का त्याग करदेना उत्तम त्याग है। परिग्रहों के त्याग कर देने से ही आत्मा का वास्तविक हित होता है तथा समस्त आपत्तियां दूर हो जाती हैं। जिस प्रकार पानी से समुद्र कभी तृप्त नहीं होता उसो प्रकार
अधिक से अधिक परिग्रह होने पर भी यह मनुष्य कभी तप्त नहीं होता। यही समझकर मुनिराज समस्त परिग्रहोंका त्यागकर त्याग धर्मको स्वीकार करते हैं।
उत्तम आकिंचन्य-यह मेरा है या मैं इसका हूं-इस प्रकारके ममत्वका सर्वथा त्यागकर देना, यहां तककि शरीर से भी ममत्वका सर्वथा त्याग कर देना आकिंचन्य है। शरीर से ममत्व करने वाला पुरुष सदा काल संसार में परिभ्रमण करता है तथा जो शरीर से ममत्वका सर्वथा त्याग कर देता है वह अवश्य ही मोक्षको प्राप्त होता है । यही समझकर मुनिराज तिल तुप मात्र भी परिग्रह नहीं रखते और शरीर से भी ममत्वका त्यागकर परम आकिंचन्य व्रत धारण करते हैं।
उत्तम ब्रह्मचर्य - स्त्री मात्रकी आसक्ति का त्यागकर अपने शुद्ध श्रात्मा में लीन रहना ब्रह्मचर्य है। अथवा स्वतंत्रता पूर्वक धर्म