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जैन-दशन करते हैं उस समय अनेक दुष्ट लोग उनसे दुर्चचन कहते हैं या मारते पीटते हैं अथवा प्राण तक लेनेको तत्पर रहते हैं फिर भी वे मुनिराज चितवन करते हैं कि ये पुरुष मेरे शरीर को कष्ट देते हैं, आत्माके धर्मका विघात नहीं करते तथा अपने पाप कर्म बांधते हुए भी मेरे कर्मोकी निजरा करते हैं । यही समझकर वे उत्तम क्षमा धारण करते हैं।
उत्तम मार्दव-कुल जाति विद्या ऋद्धि आदि के रहते हुए भी अभिमान नहीं करना उत्तम मार्दव है । इस धर्म के होने से गुरु का अनुग्रह रहता है, साधु पुरुष उत्तम समझते हैं, इसी गुण से सम्यग्ज्ञानका पात्र होता है और स्वर्ग मोक्ष प्राप्त करता है। अभिमान करने से व्रत शील नष्ट हो जाते हैं और साधु लोग उसको छोड़ देते हैं तथा वह अनेक आपत्तियों का पात्र होता है।
उत्तम आर्जव-मन वचन काय की क्रियाओं को सरल रखना. मायाचार का सर्वथा त्याग कर देना आर्जव है । सरल हृदय में अनेक गुण आजाते हैं, सरल हृदयवालों को उत्तम गति प्राप्त होती है, सब लोग उनको मानते हैं और विश्वास करते हैं । यही समझकर उत्तम आर्जव गुण धारण किया जाता है ।
उत्तम शौच-लोभका सर्वथा त्याग कर देना उत्तम शौच है। लोभी पुरुष के समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं ! लोभी पुरुषों को इस लोक में अनेक आपत्तियां प्राप्त होती हैं तथा परलोक में भी निंद्य गति प्राप्त होती है । यही समझकर मुनि राज उत्तम शौचको