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लेन-दर्शन लागे या रखेंगे जिससे कि किलो जीवकी विराधना न हो जाय! इस प्रकार देव शोधकर ठाने रखने की बाान निक्षेपल समिति
कहते हैं।
उत्सर्गसमिति-मुनिराज जब मल नृत्र करने को बैठने हैं तब उस भूमि को देखकर जीव जंतु रहित स्थान में ही बैठते हैं और जिर भी पीली ने उसको शुद्ध कर लेते हैं तब मल मूत्र करते हैं। इस प्रकार जीव जन्तु रहित भूमि को देख शोधकर मल मूत्र करना उत्सर्ग समिति है। इस प्रकार सनेप से पांच समितियों का स्वत्य है। इन समितियों के पालन करने से किसी जीवको बाधा नहीं होती और इस प्रकार अहिंसा महावत का पूर्ण रीति से पालन होता है।
धर्म
आत्माकं स्वभाव को धर्न कहते हैं । जो प्रात्मा का स्वभाव होता है वही इस जीवको वर्ग मोक्ष के उत्तम स्थान में पहुंचा सकता है। ऐसे वर्म दश हैं उत्तम इमा, उत्तम मार्दव उत्तम श्रार्जव. उत्तम शौच उत्तम सत्य, उजन संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य ।
उत्तन क्षमा-कोष अपन्न होने के कारण उपस्थित होने पर भी अपने छन्य में किसी प्रकार का संकेश उत्पन्न नहीं होने देना, क्रोध उत्पन्न नहीं हो न देना जमा है। यदि वही जना सम्यन्दर्शन सहित होतो वह उत्तम क्षमा कहलाती है । मुनिराज चर्या को गमन