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जैन-दर्शन
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- इस प्रकार बारह अंगों का वर्णन सब श्रतज्ञान कहलाता है। यह श्रुतज्ञान भी मनसे उत्पन्न होता है इसलिये यह भी परोक्ष है। इस प्रकार मतिज्ञान और श्रतज्ञान दोनों ही ज्ञान परोक्ष हैं।
अवधिज्ञान-केवल आत्माके द्वारा जो मूर्त पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है उसको अवधिज्ञान कहते हैं । यह ज्ञान संख्यात असंख्यात योजन स्थित सुक्ष्म स्थूल पदार्थों को प्रत्यक्ष जानता है। यह ज्ञान देव नारकियों के जन्म से ही होता है और शेष जीवोंको कर्मों के क्षयोपशम से होता है । कर्मों के क्षयोपशम से होने वाला अवधिज्ञान-कोई तो एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक साथ जाता है या परलोकमें भी साथ जाता है। तथा कोई अवधि ज्ञान वहीं रह जाता है। कोई अवधिज्ञान बढ़ता रहता है, कोई घटता रहता है। तथा कोई अवधि ज्ञान उतना ही रहता है और कोई घटता बढ़ता रहता है। इस प्रकार अवधि ज्ञानके छह भेद हैं। इनके सिवाय देशावधि, सर्वावधि, परमावधि ये तीन भेद हैं। ऊपर लिखे छह भेद देशावधि के हैं।
.. मनःपर्ययज्ञान-यह ज्ञान भी केवल आत्मा के द्वारा मूर्त पदार्थों को प्रत्यक्ष जानता है । दूसरे के मनमें जो पदार्थ चितवन किये जा रहे हैं उनको यह ज्ञान पूछे, बिना पूछे बतला देता है। अवधिज्ञान इस प्रकार नहीं बता सकता। पूर्ण अवधिज्ञान सक्षम से सूक्ष्स जिस पदार्थ को जानता है उसके यदि अनंत भाग किये जायं-उनमें से एक भाग को भी मनःपर्यय ज्ञान जान लेता है।