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जैन-दर्शन
२६६ ] कोई भाई अपनी बहिन के घर मरा हो तो बहिन को तीन दिनका सूतक लगता है। यदि किसी वहिन का मरण भाई के घर हो तो भाई को तीन दिन का सूतक मानना चाहिये । यदि दोनों का मरण अपने अपने घर हो अथव किसी दूसरी जगह हो तो उन भाई वहिन दोनों को दो दिनका सूतक मानना चाहिये । बहिन के मरने का सूतक भाई को ही लगता है भाई की ली को नहीं । इसी प्रकार भाई के मरने का सूतक बहिन को ही लगता है वहनोई को नहीं लगता । यदि बहनोई अपने साले का मरण सुने तो उसकी शुद्धि केवल स्नान कर लेने मात्र से होती है। इसी प्रकार भोजाई अपनी ननद के मरने के समाचार सुनकर केवल स्नान कर लेने मात्र से शुद्धि मानी जाती है । नाना, नानी, मामा, मामी, घेवता, भानेज, फूफी मौसी इनमें से उसे तीन दिनका सूतक मानना चाहिये । यदि ये अपने अपने घर मर वा और कहीं. मरें तो दो दिनका सूतक मानना चाहिये । यदि इनके मरने के समाचार दश दिन वाद सुने तो उसकी शुद्धि केवल स्नान कर लेने मात्र से मानी जाती है। यदि कोई बालक तीन वर्ष तक का मर जाय तो माता पिता को पूर्ण सूतक मानना चाहिये तथा निकट के कुटुम्वियों को एक दिनका और दूरके कुटुम्बियों को स्नान करने मात्रका सूतक है। किसी किसी आचार्यका यह भी मत है कि पांच वर्ष तक के बालक के मरने का सूतक पूर्ण ही मानते हैं। जिसका चौल कर्म वा मुंडन होगया है ऐसे बालक के मरने पर माता पिता और भाइयों को पूर्ण सूतक लगता है । तथा निकटके कुटुम्वियों को पांच