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जैन-दर्शन
को काल कहते हैं । स्त्रियों के काल में जो रजो धर्म होता है यह किसी विकार से उत्पन्न होता है इसलिये वह दोष उत्पन्न करने वाला नहीं माना जाता । यदि कोई स्त्री आधी रात पहले रजःस्वला हो जाय वा आधीरात के पहले किसी का मरण हो जाय तो उसका सूतक पहले दिन समझना चाहिये ऐसा सूतक प्रकरण का निश्चित सिद्धान्त है। किसी किसी का यह भी सिद्धान्त है कि यदि कोई स्त्री अत्यन्त यौवनवती हो और वह सोलह दिन के पहले ही रजस्वला हो जाय तो वह स्नान करने मात्र से शुद्ध होती है । यदि कोई स्त्री स्पष्ट रीति से बार बार रजस्वला होती रहे तो दान पूजा आदि कार्यों में उसकी शुद्धि नहीं मानी जाती । यदि कोई स्त्री रसोई बनाते समय वा अन्य कोई ऐसा ही कार्य करते समय रजःस्वला हो जाय तो उसे वे सब काम छोड देने चाहिये और फिर लघु प्रायश्चित करना चाहिये । यदि किसी स्त्री को रजःस्वला होने की शंका मात्र ही हो जाय और वास्तव में रजःस्वला न हो तो उसे स्नान कर कुल्लाकर भोजनादिक बनाना चाहिये वा जिन पूजा आदि कार्य करने चाहिये । यदि कोई स्त्री पात्रदान वा जिन पूजा आदि करती हुई रजःस्वला हो जाय तो उसे सव क्रियाए' छोड देना चाहिये और कि रप्रायश्चित लेना चाहिये । यांद कोई स्त्री चार चार रजःस्वला होती हा, स्नान करने वाद फिर रजःस्वला हो जाती हो तो उसे जिन पूजा वा पात्र दान आदि कोई कार्य नहीं करने चाहिये । इन धार्मिक क्रियाओं के करने