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जैन-दर्शन. अपेक्षा सिन्ध नदी के उद्गम स्थान को भूगोल का मध्य मान लोगे तो फिर भूगोल का मध्य भाग समस्त स्थानों को मान लेना पडेगा अमध्य भाग कहीं भी नहीं ठहरसकेगा । इसलिये उज्जयिनी को. भूगोल का मध्य भाग मानने वाले को अपना.सिद्धान्त छोड देना पडेगा । यदि उज्जयिनी को भूगोल का मध्य भाग .मानने का . सिद्धान्त नहीं छोडा जायगा तो फिर यह भी मान लेना पडेगा कि उज्जयिनी के उत्तर की ओर से उत्तर मुख निकलनेवाली नदियां. सब उत्तर की ओर हो वहेंगी, दक्षिण की ओर से दक्षिणमुख निकलने वाली नदियां दक्षिण की ओर बहेंगी, उर्जायनी के पूर्व की ओर से पूर्वमुख निकलने वाली नदियां पूर्व की ओर बहेंगी तथा पश्चिम की ओर से निकलने वाली पश्चिम मुख नदियां पश्चिम की
ओर वहेंगी। परन्तु उज्जयिनी से न तो कोई नदी निकलती है और न कभी ऐसा हो सकता है। यदि यह कहो कि भूमि के अवगाहन के भेद से नदियों की गति भी भिन्न भिन्न हो जाती है सो भी ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने से तो स्थिर भूगोल के मध्य में एक महावगाह मानना पडेगा । यदि महावगाह माना जायगा तो फिर यह भी मानना पडेगा कि पृथ्वी गोल है इसलिये नीचे की ओर जितना अवगाह है उतनी ही ऊँचाई ऊपर की ओर माननी पड़ेगी परन्तु यह बात भी कभी नहीं बन सकती। इसलिये यह मानना ही पडेगा कि जितनी नदियां है वे सब भूगोल को (स्थिर गोल पृथ्वी को) उल्लंघन करके ही बहती हैं। पृथ्वी को गोल मानने से नदियों का प्रवाह कभी सिद्ध नहीं हो सकता । यदि फिर भी