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जैन-दर्शन
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गोल पृथ्वी मानते हो तो वह भी ठीक नहीं है । क्योंकि केवल उत्तर की ओर भी बहुत बडा पृथ्वी का भाग पडा हुआ 1 कदाचित यह कहो कि ग्यारह सौ बीस योजन का सौ वां भाग अर्थात् कुछ अधिक ग्यारह योजन पृथ्वी समधरातल है शेष सब भूमि गुलाई लिये हुए है सो भी ठीक नहीं है । क्योंकि कुरु क्षेत्र में बारह योजन भूमि भी समधरातल देखी जाती है । यदि कुरुक्षेत्र की भूमि को अलग भूगोल मानोगे अर्थात् वहां की पृथ्वी भी बारह योजन समधरातल है शेष गुलाई लिये हुए गोल पृथ्वी है सो भी ठीक नहीं है क्योंकि इस प्रकार अनेक भूगोल सिद्ध हो जायेंगे और इस प्रकार अनवस्था दोष आ जायगा ।
यदि पृथ्वी को स्थिर मानते हुए भी उसे गोल मानलें तो फिर गंगा नदी पूर्व को बहती है और सिन्धु नदी पश्चिम को बहती है यह बात कैसे संघटित होगी । कदाचित् यह कहो कि नदियां सब स्थिर भूगोल के मध्य भाग से निकलती हैं तो फिर बताना चाहिये कि भूगोल का मध्य कहां है ? यदि भूगोल का मध्य भाग उज्जयिनी को मानलें तो वहां से तो गंगा सिंधु निकलती नहीं । यदि यह कहा कि जहां से ये नदियां निकलती हैं वही भूगोल का मध्य भाग है तो यह बात भी किसी प्रकार नहीं बन सकती है क्योंकि जहां से गंगा नदी निकलती है यदि उसको हो मध्य भाग मानते हो तो सिंधु नदी का उद्गम स्थान वहां से बहुत दूर है इसलिये सिन्धु नदी का उद्गम स्थान भूगोल का मध्य भाग नहीं हो सकता | यदि सिन्धु नदी के उद्गम स्थान को वाह्य भूमि की