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जैन-दर्शन
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अनुमान प्रमाण से अदृष्ट कारण की सिद्धि होती है, परन्तु इच्छानुसार दिशा की ओर वायु का भ्रमण निर्विवाद सिद्ध नहीं है इसलिये व्यभिचार रूप दृष्ट कारण के न होने पर भी उस सुख वा दुःख रूप कारण के लिये अदृष्ट रूप कारण अनुमान से सिद्ध होता है । कदाचित् यह कहो कि पृथ्वी का परिभ्रमण होता है इसीलिये उसकी कारणभूत नियत दिशा की ओर बहती हुई वायु की भी सिद्धि हो जाती है । सो भी ठीक नहीं है क्योंकि जिस प्रकार पृथ्वी का भ्रमण असिद्ध है उसी प्रकार उसकी कारण भूत नियत दिशा की ओर भ्रमण करती हुई वायु भी असिद्ध सिद्ध होती है । यद्यपि अनेक दिशाओं में और अनेक देशों में सूर्य चन्द्रमा की प्रतीति भू भ्रमण के कारण भो सिद्ध होती है तथापि उससे पृथ्वी का परिभ्रमण सिद्ध नहीं होता । क्योंकि अनुमित अनुमान से भी अदृष्ट विशेष की सिद्धि नहीं होती । इसलिये हमने ठीक ही कहा है कि ऊपर या नीचे की ओर पृथ्थी का परिभ्रमण कभी भी सिद्ध नहीं हो सकता । क्योंकि आप लोगों ने जो पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण स्वीकार किये हैं वे कभी भी सिद्ध नहीं हो सकते । जिस प्रकार आप लोगों का भू भ्रमण सिद्ध नहीं हो सकता उसी प्रकार उसके कारण भी कभी सिद्ध नहीं हो सकते । . . इसके सिवाय :पृथ्वी का परिभ्रमण मानने में कितने ही साक्षात् दिखने वाले दोष प्रगट दिखाई पड़ते हैं आगे उन्हीं को दिखलाते हैं। ... ..