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जैन-दर्शन ___ सन्यग्दर्शन का चौथा गुण आस्तिक्य है । आस्तिस्य ओस्तिकपने को कहते हैं । ऊपर लिखे अनुसार देव धर्म शास्त्र गुरुका श्रद्धान करना, यथार्थ तत्वोंचा श्रद्धान करना और लोक परलोक
आदि सब भगवान् जिनेन्द्र देव के कहे अनुसार मानना आत्तिकपना कहलता है । सन्यन्नष्टी जीव सन्यादर्शन के प्रभाव से भगवान जिनेन्द्र देव पर गाढ श्रद्धान करता है और इसीलिये वह उनके वचनों पर भी गाड श्रद्धान करता है। इसीलिये वह परम आस्तिक कहलाता है । यह ऐसा गाड आस्तिकतना सन्यग्दर्शन के प्रभावसे ही होता है और इसीलिये यह सम्यग्दर्शन का गुण कहलाता है।
इस प्रकार प्रशम, संवेग, अनुकंपा और आस्तिक्य ये चार गुण सन्यरर्शन के प्रगट होने पर होते हैं तथा सन्यदर्शन के चिह्न या लक्षण कहलाते हैं। सम्बन्दर्शन अात्माका अमूत्त गुण है । वह .. इन्द्रिय-गोचा नहीं हो सकताः परन्तु इन चारों गुणों से जाना .
जाता है।
सम्यग्दर्शन के गुण सन्यग्दर्शन के पच्चीस गुण हैं-आठ अंग, आठों मदों का त्याग तीन मृडताओं का त्याग और वह अनायतनों का त्याग बागे इन्हीं को अनुक्रम से बतलाते हैं। । सन्यन्दर्शनके आठ अंग है-निःशक्ति, निकांक्षित, निविचिकित्सा, अमढष्टि उपगृहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना। ..