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असे पदार्थ तथा दूसरा प्रावित है जिससे वो यह कि इस
जैन-दर्शन कर्ता मनुष्य है । खेती वाढी सडक बाग बगीचा वर्तन बन्न आदि सव मनुष्य ही बनाता है। इसलिये इस सबका फर्ता मनुष्य है। पशु पक्षी भी संतान उत्पन्न करते हैं, घोंसला धनाते या अन्य अनेक कार्य करते हैं, इसलिये उन सय कार्यों के फर्ता वे भी हैं । इस प्रकार इस सव सृष्टि का कर्ता सशरीर प्रात्मा है।
अब इसमें दो प्रश्न रह जाते हैं-एक तो यह कि इस सशरीर श्रात्मा में ऐसी कौनसी शक्ति है जिससे यह समस्त पदार्थों को पनाता है । तथा दूसरा प्रश्न यह कि नदी पर्वत श्रादि वहुत से ऐसे पदार्थ हैं जिन्हें किसी मनुष्य चा पशु पक्षी ने नहीं बनाया है । कम से कम ऐसे पदार्थों का की तो ईश्वर को अवश्य मानना पडेगा । परन्तु इसका उत्तर यह है कि इस जीव में यद्यपि अनन्त गुण हैं तथापि किसी भी कार्य के फरने में ज्ञान और हलन चलन क्रिया या गमन करने की शक्ति ये दो ही गुण मुख्यतया फार्म
आते हैं। इसमें भी हलन चलन क्रिया व गमन करने की शक्ति मुख्य कारण है । हलन चलन क्रिया होने से ही यह जीव किसी भी कार्य के करने में समर्थ होता है । ज्ञान तो केवल उस कार्य को व्य स्थित रूप से पनाने में वा व्यवस्थित समय और व्यव. स्थित क्षेत्र में बनाने में सहयता देता है । यदि इस जीव में ज्ञान न होतो कोई भी पदार्थ व्यवस्थित रूप से नहीं बन सकता। उसको व्यवस्थित रूप से बनाना ज्ञान का कार्य है। परन्तु यह कार्य बनता है हलन चलन क्रिया से । यदि इस जीव में हमन चलन क्रिया वा गमन करने की शक्ति न मानी जाय तो यह किसी
मिन करने की बात यदि इस जा परन्तु वह