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जैन-दर्शन
१८६] समय दिखाई देते हैं वा अनुमान से सिद्ध होते हैं वे सब किसी न किसी पदार्थ से बदल कर बने हैं। जैसे एक मनुष्यका जीव इस मनुष्य शरीर को छोडकर देव हो जाता है और देव का शरीर छोडकर मनुष्य वा पशुका शरीर धारण कर लेता है। परंतु जीव वही रहता है। जीव कभी भी नया उत्पन्न नहीं होता और न हो सकता है । इसी प्रकार एक मकान ईट चूना से बनता है परंतु ईंट मिट्टी से बनती है, चूना कंकड से बनता है, कंकड मिट्टी से बनते हैं और मिट्टी कारण कलाप मिलने पर पत्ते लकडी कपडा गोबर
आदि अनेक पदार्थों से बन जाती है । विज्ञान से भी यही बात सिद्ध होती है कि प्रत्येक पदार्थ किसी न किसी पदार्थ से बदलकर बनता है । इससे यह बात सुतरां सिद्ध हो जाती है कि यह सृष्टि किसी न किसी रूपमें सदा से चली आई है और किसी न किसी रूपमें सदा बनी रहेगी । इसलिये न इसका कोई कर्ता है और न कोई हर्ता है । इस प्रकार यह सृष्टि अनादि और अनिधन स्वयं सिद्ध हो जाती है। . इस प्रकार इस सृष्टि का अनादि अनिधनपना विज्ञान द्वारा सिद्ध होने पर भी कुछ दर्शनकार इस सृष्टिका कर्ता किसी ईश्वर को मानते हैं। परंतु उन्हें स्वस्थ चित्त होकर एकान्त स्थान में बैठकर विचार करना चाहिये कि यह संसारी सशरीर मनुष्य अपनी संतान उत्पन्न करता है, मकान बनाता है और अनेक नये नये पदार्थ उत्पन्न करता है। उन सबका कर्ता यह. संशरोर मनुष्य है। बिजली, गैस, वायुयान, रेलगाडी, ऐंजिन मोटर आदि सबका