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जैन दर्शन
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- निक्षेप
.... जिनके द्वारा पदार्थों का स्वरूप कहा जाय उनको निक्षेप कहते हैं । निक्षेप के चार भेद हैं:-नाम, स्थापना द्रव्य और भाव ।
__नाम निक्षेप गुण कर्म के बिना जो व्यवहार चलाने के लिये नाम रक्खा जाता है उसको नाम निक्षेप कहते हैं । जैसे किसी का नाम नयनसुम्व है। चाहे वह अन्धा ही हो परन्तु व्यवहार में उस को नयनसुख कहते हैं । यह नाम निक्षेप का विषय है।
। स्थापना निक्षेप किसी मूर्ति में किसी की कल्पना कर लेना स्थापना निक्षेप है। जैसे भगवान महावीर स्वामी की वैसे ही मूर्ति चनाकर उसमें महावीर स्वामी की स्थापना करना स्थापना निक्षेप है। यह स्थापना निक्षेप दो प्रकार की है-तदाकार और अंतदाकार। जिसकी स्थापना करनी है उसकी वैसी ही मूर्ति बनाकर उसमें स्थापना करना तदाकार स्थापना है। जैसे तीर्थकरों की मति में तीर्थंकरों की स्थापना है। महावीर स्वामी की मूर्ति में महावीर स्वामी की स्थापना है । जो मूर्ति उसके आकार की न हो उसमें उसकी स्थापना करना अतदाकार स्थापना है। जैसे सतरंज की गोट में हाथी घोडे बादशाह पियादे आदि की कल्पना की जाती है । इसको अंतदाकार स्थापना कहते हैं। .. ..... .
.. - द्रव्यं निक्षेप- जो कोई मनुष्य किसी पद पर पहले हो, अब उसने वह पदं छोड़ दिया हो अथवा जो आगामी काल में होने