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जैन-दर्शन उपचरित-सद्भूत-व्यवहार-कर्मा की उपाधि सहित गुए गुणी में भेद मानना उपचरितसद्भत-व्यवहार है। जैसे जीव के मतिज्ञान श्रुतन्नान आदि गुण हैं।
अनुपचरित-सद्भुत-व्यवहार-कर्म की उपाधियों से रहित गुण गुणी में भेद मानना अनुपचरित-सद्भत व्यवहार है। जैसे केवलज्ञान केवलदर्शन गुण जीव के हैं।
असद्भत व्यवहार के भी दो भेद :-उपचारितासद्भुतव्यवहार और अनुपचरितासद्भूत-व्यवहार ।
उपचरितासद्भूत-व्यवहार- एक पदार्थ किसी दूसरे पदाय ' मिला हुआ न होने पर भी उसका यतताना उपचरितासभतव्यवहार है । जैसे यह धन देवदत्त का है।
अनुपचरितासद्भुत व्यवहार-कोई एक पदार्थ किसी दूसरे पदार्थ से मिला हुआ होने पर उसका ही घतलाना अनुपचरितासद्भत-व्यवहार है । जैसे यह शरीर जीवका है। देवदत्त का शरीर है। ___ इसप्रकार संक्षेप से नयों के भेद हैं। वास्तव में देखाजाय तो नयों के अनेक भेद होते हैं। जितने वचन है वे सब नय हैं। नयों के विना इस संसार का काम कभी नहीं चल सकता । पिना नयों के किसी पदार्थ का स्वरूप नहीं कहा जा सकता । इसलिए इनका स्वरूप समझ लेना आवश्यक है।