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________________ - de- r - e - जेन-दर्शन यह कर्म सम्यग्दर्शन को नष्ट नहीं कर सकता । इस प्रकार दर्शन मोहनीय के तीन भेद बतलाये। चारित्र मोहनीय-जिसके उदय से यह आमा सन्या चारित्र धारण न कर सके । इस चारित्र मोहनीय के पशीन भेद हैं. ! यथा अनंतानुबंधो-साध-गान-माया-लोभः-जिनक. उदय में सन्यग्दर्शन प्रकट न हो। जो अनंत संमार का बंध करें गेले क्रोध, मान, माया, लोम अनंतानुबंधी-योग-मान-माया-लोभ कहलाते हैं। अप्रत्याख्यानावरण-क्रोध-मान-माया-लोभ:-जन उदय में श्रावकों का एक देश चारित्र न हो सके। प्रत्यारव्यानावरा-कोध-गान गाया-लोभ:--जिनके उदय से मुनियों का सकल चारित्र न हो सके। संचलन-मोध-मान-माया-लोम:-जिनके उदय से यथास्यात चारित्र न हो सके। इस प्रकार ये सोलह कपाय वेदनीय कहलाते हैं। हास्य-जिसके उदय से हंसो पाये। रति-जिसके उदय से अनुराग हो । अरति-जिसके उदय से अरति वा द्वेष हो। शोक-जिसके उदय से शोक हो । भय-जिसके उदय से भय हो ।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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