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जैन-दर्शन . वेदनीय-जिसके उदय से सुख वा दुःख का अनुभव हो । इसके दो भेद हैं । साता वेदनीय और असाता वेदनीय ।
साताचेदनीय-जिसले उदय से सुखका अनुभव हो । असाताचेदनीय--जिसके उदय से दुःखका अनुभव हो ।
मोहनीय-जो आत्मा के यथार्थ स्वरूप को प्रकट न होने दे चा आत्मा को मोहित करदे । इसके दो भेद हैं। एक दर्शन मोहनीय दूसरा चरित्र मोहनीय 1
दर्शन मोहनोय-जो आत्मा के सम्यग्दर्शन गुण को प्रकट न होने दे। इसके तीन भेद हैं मिथ्यात्व, सम्यग्मिध्यात्व और सम्यक् प्रकृतिमिथ्यात्व।
मिथ्यात्व-जिसके उदय से देव शास्त्र गुरु वा तत्त्वों का विपरोत श्रद्धान हो अथवा जिसके उदय से सम्यग्दर्शन प्रकट न हो। यह मिथ्यात्व कर्म तीव्र पापबंध का कारण है। ___ सम्यग्मिध्यात्व-जिसके उदय से सम्यक्त्व और मिथ्यात्व के मिले हुए एक प्रकार के विलक्षण परिणाम हों । इसके उदय से भी तत्त्वों का यथार्थ श्रद्धान नहीं होता। इसलिये वह भी मिध्यात्व में ही अंतभूत हैं।
सम्यक्-प्रकृति-मिथ्यात्व-जिसके उदय से सम्यग्दर्शन में दोप उत्पन्न हों, यथार्थ श्रद्धान चलायमान हो जाय वा मलिन हो जाय अथवा श्रद्धान में हडता न रहे । दोष उत्पन्न करने पर भी