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जैन-दर्शन
१५१] चारित्रमोहनीय-कषायों के उदय से उत्पन्न होने वाले तीन परिणाम चारित्र मोहनीय के कारण हैं। इसके सिवाय चारित्र को घात करनेवाले जितने परिणाम वा कार्य हैं वे सब चारित्र मोहनीय के कारण हैं।
नरकायु के कारण बहुत सा आरंभ और बहुतसा परिग्रह रखना, मिथ्यादर्शन तथा हिंसा आदि के जितने साधन हैं सब नरकायु के कारण हैं। __ तिर्यवायु-मायाचारी करना, शील में दोष लगाना, श्रेष्ठगुणों का लोप करना आदि तियचायु के कारण हैं। .
मनुष्यायु-थोडा आरंभ, थोडा परिग्रह, शील, संतोष, हिंसा का त्याग, स्वभाव से ही कोमल परिणामों का होना आदि मनुष्यायु का कारण है।
देवायु-अनुराग पूर्वक संयम, संयमासंयम अकामनिर्जरा, वाल वा अज्ञानता पूर्वक तप करना आदि देवायु का कारण है । सम्यग्दर्शन वैमानिक देवायु का कारण है।
अशुभ नाम-मन ववन काय तीनों योगों की कुटिलता धार्षिक कार्यों में परस्पर झगड़ा करना, मिथ्यादर्शन चुगली आदि अशुभ नाम के कारण हैं।
शुभ नाम-इनसे विपरीत मनवचन काय को सरल रखना धार्मिक कार्यों में कोई झगड़ा न करना, सम्यक्त्व को शुद्ध रखना आदि शुभ नाम का कारण है ।