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जैन-दर्शन
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द्रव्यों के स्वभाव
अस्तित्वभाव, नास्तिस्वभाव, नित्यत्वभाव, अनित्यत्वभाव, एकस्वभाव, अनेकस्वभाव, भेदस्वभाव, अभेदस्वभाव भव्यस्वभाव, अभव्यत्वभाव, परमस्वभाव चे ग्यारह सामान्य स्वभाव हैं । तथा चेतनत्वभाव, अचेतनस्वभाव. मूर्तस्वभाव, अमूर्तस्वभाव. एकप्रदेश स्वभाव, अनेकप्रदेशत्वभाव, विभावत्त्वभाव, शुद्धत्वभाव, अशुद्धस्वभाव, उपचरितस्वभाव ये दश द्रव्यों के विशेष स्वभाव हैं । इनमें से जीव में और पुलों में सब इकईस रहते हैं ।
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जीव में अचेतनस्वभाव मूर्तस्वभाव उपचार से रहते हैं । पु में चेतनस्वभाव अमूर्तस्वभाव उपचार से रहते हैं । धर्म अधर्म आकाश में चेतनत्वभाव, मूर्तस्वभाव, विभावस्वभाव. एक प्रदेश स्वभाव, शुद्धस्वभाव ये पांच स्वभाव नहीं होते, शेष सोलह रहते हैं । काल द्रव्य में बहुप्रदेश स्वभाव नहीं रहता तथा ऊपर लिखे पांच स्वभाव भी नहीं रहते । इस प्रकार छह स्वभाव नहीं रहते शेष पंद्रह स्वभाव रहते हैं ।
प्राप्तव
कर्मों के आने को श्राव कहते हैं । जिस प्रकार किलो सरोवर में पानी आने के अनेक मार्ग होते हैं उसी प्रकार कर्मों के आने के अनेक मार्ग वा कार्य हैं परन्तु वे सब मन वचन काय की क्रियाओं के द्वारा होते हैं । मन वचन काय की क्रियाएं दो प्रकार