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जैन-दशन समान है परन्तु वह अनेक जीरों में व्यक्त हो सकता है और अनेक जीवों में व्यक्त नहीं होता । यही भव्यय और अभव्यत्वका लक्षण है।
___ इस प्रकार जीवों के भाव दिखलाय । यहाँ पर इतना और समझलना चाहिये कि जीवका लनण चेतना बतलाया है। चेतना शब्दका अर्थ ज्ञान दर्शन है। बानके भेद पहले बता चुके हैं। दर्शन चार हैं चनुदर्शन, अचक्षुदर्शन,अवधिदर्शन, और केवलदर्शन: एकेन्द्रिय जीवों के स्पर्शन इन्द्रिय से उत्पन्न होनेवाला मतिज्ञान रहता है तथा वर्शन इन्द्रिय से होने वाला अवलुदर्शन रहता है
और अक्षर के अनन्तव भाग ध्रुत नान होता है ।हुई मुई के पौधे को हाथ से छूने से उसे स्पर्श जन्यवान हो जाता है और इसीलिये वह छूते ही सिकुछ जाता है। दोइन्द्रिय के दोइन्द्रियों से ज्ञान तथा दो इन्द्रियों से अचनु दर्शन होता है तथा योपशम के अनुसार श्रुतनान होता है । तेइन्द्रिय जीवों के तीन इन्द्रियों से ज्ञान और तीन हो इन्द्रियों से अवक्षुदर्शन होता है, श्रुतज्ञान क्षयोपशम के अनुसार होता है । चौ इन्द्रियों के चारइन्द्रियों से ज्ञान होता है, चार ही, इन्द्रियों से चक्षु और यत्रभुदर्शन होते हैं और क्षयोपशम के अनुसार श्रुत ज्ञान होता है । पंचेन्द्रिय तिर्थचों के पांचों इन्द्रियों से जान दर्शन होता है । तथा मनको धारण करने वाले सैनी पंचेन्द्रिय मनुष्यों के श्रुत मान विशेष होता है। श्रुतजान मन ही सेहोता है और इसीलिये वह क्षयोपशमके अनुसार तया अभ्यास