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जैन दर्शन वाह्य प्राण दश हैं। पांच इन्द्रियां, मन, वचन, काय. ये तीन बल
आयु और श्वासोच्छ्वास । इनमें से एकेन्द्रिय जीवों के एक स्पर्शन इन्द्रिय, काय वल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये चार प्राण होते हैं । दो इन्द्रिय जीवों के स्पर्शन रसना ये दो इन्द्रियां, काय
और वचन दो वल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये छह प्राण होते हैं । ते इन्द्रिय जीवों के स्पर्शन रसना प्राण ये इन्द्रियां होती है. काय वचन दो वल होते हैं श्रायु और श्वासोच्छ्वास होते हैं । इस प्रकार सात प्राण होते हैं। चौ इन्द्रिय जीवों के स्पर्शन रसना प्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियां होती हैं काय वचन दो वल होते हैं और आयु श्वासोच्छ्वास होते हैं। इस प्रकार आठ प्राण होते हैं। असेनी पंचेन्द्रिय के स्पर्शन रसना ब्राण चक्षु और श्रोत्र ये पांच इन्द्रियां होती हैं, काय और वचन दो वल होते हैं आयु और श्वासोच्छवास होते हैं । सैनी पंचेन्द्रिय जीवों के पांचों इन्द्रियां मन वचन काय, तीनों वल श्रायु और श्वासोच्छ्वास ऐसे दशों प्राण होते हैं ।
ये संसारी जीव त्रस और स्थावर के भेद से दो प्रकार केहें । दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक वस जीव कहलाते हैं और एकेन्द्रिय सब स्थावर कहलाते हैं । एकेन्द्रिय में पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक
और वनस्पतिकायिक जीव हैं । खान की मिट्टी में, खान के पत्थर में वा खान के गेरु आदि पदार्थों में पृथिवी कायिक जीव हैं.इसीलिये खान की वृद्धि होती रहती है। जल में जल- कायिक, अग्नि