________________
-
-
जैन-दर्शन
१३१] इन ग्यारह प्रतिमाओं में छह प्रतिमा तक जघन्य प्रतिमा कहलाती है। इनको धारण करने वाला जघन्य श्रावक कहलाता है। सातवीं आठवीं नौवों प्रतिमा को धारण करने वाला मध्यम श्रावक कहलाता है और दशवीं ग्यारहवीं प्रतिमा को धारण करनेवाला उत्कृष्ट श्रावक कहलाता है । उत्कृष्ट श्रावक लंगोटी मात्र का भी त्याग कर मुनिपद धारण वरलेता है। इस प्रकार संक्षेप से ग्यारह प्रतिमाओं को स्वरूप है।
तत्त्व
तत्त्व सात हैं:-जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निजेरा और मोक्षः। संक्षेप रूप से इनका स्वरूप इस प्रकार है:
जीव-जिसमें चैतन्य शक्ति हो उसको जीव कहते हैं । चैतन्य शक्ति का अर्थ ज्ञान है, जिसमें ज्ञान हो वह जीव है। मनुष्य पक्षी पशु कीडे मकोडे वृक्ष पौधे आदि सबमें ज्ञान है और इसीलिये सब जीव हैं । वृक्ष भी सब खाते हैं पीते हैं, बढ़ते हैं, उत्पन्न होते हैं और मरते हैं इसलिये वृक्ष पौधे भी सब जीव हैं। ___ जीव के दो प्रकार हैं-संसारी और मुक्त । जो जीव संसार में परिभ्रमण करते हैं, चारों गतियों में जन्म लेते हैं वा मरते हैं वे सव संसारी जीव कहलाते हैं। ऐसे संसारी जीव दश प्रकार के वाह्य प्राणों से जीवित रहते हैं तथा चेतना शक्ति रूप अंतरंग प्राणों से जीवित रहते हैं । चेतना शक्ति रूप प्राणं तो समस्त जीवों में हैं परंतु वाह्य प्राणों में अंतर रहता है और वह इस प्रकार है।
.