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जैन-दर्शन
२१७ ] महिना, चार महिना, श्रादिकी नियत करना चाहिये। तथा नियत समय तक मर्यादा के बाहर कभी नहीं आना जाना चाहिये। मर्यादा के बाहर से कोई पदार्थ मंगाना, वा वाहर किसी को भेजना, मर्यादा के बाहर रहने वाले किसी भी मनुष्यको किसी प्रकार का संकेत करना, देला पत्थर फेंकना. वा शब्द के द्वारा संकेत करना इस व्रत के दोष हैं। इस व्रत को धारण करने वालों को ये दोष कभी नहीं लगाने चाहिये।
अनर्थदंडविरति-व्रत-जिन कामों के करने में कोई प्रयोजन तो न हो और व्यर्थ ही पाप लग जाय ऐसे काम करने को अनर्थदंड कहते हैं। ऐसे व्यर्थ ही पार लगाने वाले कामों का त्याग कर देना अनर्थदंड-विरति अथवा अनर्थदंडवत है।
यपि अनर्थ दंड अनेक प्रकार के होते हैं, तथापि वे सब पांच भेदों में वट जाते हैं। वे पांच भेद इस प्रकार हैं-पापोपदेश, हिंसादान, अपध्यान, दुःश्रुति और प्रमाद वर्या ।. जिस उपदेश वा कथा वार्ता को सुनकर लोग तिर्यचों को दुःख पहुंचावे वा हिंसाका व्यापार करें, वा किसी को ठगे ऐसे उपदेश वा कथा वार्ताको पापोपदेश कहते हैं । हिंसा के साधन तलवार बंदूक छुरा सांकल अग्नि आदिको दान देना हिंसादान है। ऐसे पदार्थों को लेने वाला उनले हिंसा अवश्य करता है और देने वाला भी समझता है कि यह हिंसा का ही साधन है इसलिये उसको भी पाप अवश्य लगता है । राग वा द्वप से किसी के पुत्र स्त्री भाई श्रादि के वध बंधन