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जैन-दर्शन
१११ ] अनेक मनुष्य करते हैं तो उन सबको पाप लगेगा। इस प्रकार हिंसक एक होने पर भी पाप अनेक जीवों को लगता है।
युद्ध राजाकी आज्ञा से होता है उसमें अनेक प्राणी हिंसा करते हैं तथा राजा घर ही बैठा रहता है। तो भी समस्त पाप का भागी राजा होता है। हां अपने अपने परिणामों के अनुसार योद्धा भी होते हैं । इस प्रकार अनेक जीवों के द्वारा होने वाली हिंसाका भागी एक एक ही जीव होता है।
हिंसा के परिणाम होने पर यदि वह उस जीवको न मारसके तो भी उसको पोप लग ही जाता है तथा ऊपर लिखे डाक्टर के परिणामों के अनुसार हिंसा हो जाने पर भी हिंसा के परिणाम न होने से पाप नहीं लगता। , इन सब बातों को समझकर तथा हिंसा, हिंस्य, हिंसक और हिंसाका फल इन सब बातों को समझकर हिंसाका सर्वथा त्यागकर देना ही अात्माका कल्याण करने वाला है।
हिंसाका पूर्ण त्याग मन वचन काय और कृत कारित अनु. मोदना से होता है। मन से करना, वचन से करना, कायसे करना, मन से वचन से काय से कराना और मनसे बचन से काय से अनुमोदना करना, इस प्रकार इनके नौ भेद हो जाते हैं। इन नौसे त्याग करना पूर्ण त्याग है । तथा एक से दो से तीन से चार से पांच से छह से सात से आठ से त्याग करना एक देश त्याग है। अथवा मन १, वचन २, काय ३, मन वचन ४, मन काय ५,