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________________ जैन-दर्शन पीना चाहिये और ऐसा ही पानी नहाने धोने के काममें लाना चाहिये। इस प्रकार ये पाठ मूलगुण हैं । श्रावक इनको अवश्य पालन करते हैं । विना इनको पालन किये कोई भी गृहस्थ श्रावक नहीं कहला सकता । इन मूलगुणों के साथ सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान अवश्य होता है । यदि सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान के साथ ये पालन किये जाँय तो ये मूलगुण कहलाते हैं। यदि विना सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान के पालन किये जाय तो इनको कुलधर्म कहते हैं। कुल शब्दका अर्थ ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यों का उत्तम कुल है तथा ऐसे उत्तम कुलों में स्वाभाविक रीति से इनका पालन होता है । इसीलिये इनको कुल धर्म कहते हैं । जो ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य होकर भी मद्य मांस मधुका सेवन करते हैं पंच उदंबरों का सेवन करते हैं रात्रि भोजन करते हैं पानी छान कर नहीं पीते वे वर्ण-भ्रष्ट वा कुल भ्रष्ट समझे जाते हैं। इस प्रकार श्रावकों के मूलगुणों का निरूपण किया। यावश्यक जो अवश्य किये जाय उनको श्रावश्यक कहते हैं जिस प्रकार मुनियों के छह आवश्यक हैं उसी प्रकार श्रावको के भी छह आवश्यक हैं और वे इस प्रकार हैं:-देव पूजा करना, गुरुकी उपासना करना, स्वाध्याय करना, संयम पालन करना, तप करना और दान देना । आगे संक्षेप से इनका स्वरूप इस प्रकार है:--
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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