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जैन-दर्शन अपने आत्माके ही समान समस्त जीवों को समझता है। इसके सिवाय वह यह भी समझता है कि जिस प्रकार दुःख देने पर मुझे दुःख होता है उसी प्रकार छोटे बड़े समस्त जीवों को दुःख होता है, क्योंकि आत्मा समस्त जीवों का समान है। इसलिये जैसे मैं अपने प्रात्मा की रक्षा करता हूँ उसी प्रकार मुझे अन्य जीवों की रक्षा करनी चाहिये । यही समझकर वह समस्त जीवों पर दया भाव रखता है। इसके सिवाय वह श्रावक भगवान जिनेन्द्र देव के कहे हुए शास्त्रों पर भी श्रद्धान रखता है तथा उन शास्त्रों में जो जीवस्थान, जीवों के उत्पन्न होने के स्थान आदि बतलाये हैं उनको भी मानता है। इसलिये वह पृथ्वी जल अग्नि वायु वनस्पति दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय पंचेन्द्रिय आदि समस्त जीवों की जातियों को मानता है । इसलिये वह समस्त जीवों पर दया भाव रखता हुया सबकी रक्षा करने में तत्पर रहता है।
पानी छानकर पीना व काम में लाना:
पानी में दो प्रकार के जीव रहते हैं, एक बस और दूसरे स्थावर । अडतालीस अंगुल लंवे तथा छत्तीस अंगुल चौडे मोटे कपडे को दुहराकर किसी वर्तन के मुख पर रखकर पानी छानना चाहिये तथा उसकी जीवानी उसी पानी में डाल देनी चाहिये जहां से वह पानी आया है। इस प्रकार छानने से उसके संजीव उसी पानी में पहुंच जाते हैं जहां से वह पानी आया है और छना हुया पानी त्रस रहित हो जाता है। श्रावकों को ऐसा ही छना पानी