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जैन-दर्शन
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श्रावकों के
मूलगुण
श्रावकों के मूलगुण आठ हैं और वे इस प्रकार हैं: सबका त्याग, मांसका त्याग, शहद का त्याग, रात्रि भोजनका त्याग, पांच उदुंबर का त्याग, पंच परमेष्ठीको नमस्कार करना, जीवदया और पानी छान कर पीना ।
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१- मद्य का त्याग - महुप्रा गुड आदि अनेक पदार्थों के सबने से मद्य तैयार होता है । जिस समय ये पदार्थों सहते हैं उस समय उनमें असंख्यात जीव उत्पन्न हो जाते हैं । तदनंतर उनका अर्क खींच लेते हैं उसीको मद्य कहते हैं। अके खींचते समय उन सब जीवों के शरीर का अर्क आजाता है । तथी जिसमें शरीर के रुधिर मांस का अर्क आ जाता है उसमें रुधिर मांस का संबंध होने से प्रत्येक समय में असंख्यात जीव उत्पन्न होते रहते हैं तथा मरते रहते हैं ! इस प्रकार मद्यका स्पर्श करने मात्र से असंख्यात जीवों का घात होता है, इसके सिवाय मद्य के सेवन करने से आत्मा के गुणों का घात होता है। ज्ञान नष्ट हो जाता है, कुछ को कुछ कहने लगता है, स्त्रीको माता और माताको खी समझने लगता है.
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नालियों में, सड़कों पर गिरता पढता रहता है, सब लोग उसे धिकार देते हैं तथा उसके शरीरका स्वास्थ्य सब नष्ट हो जाता है। इसीलिये श्रावक लोग इस मद्यका सर्वथा त्याग कर देते हैं । मद्य पीने वाला पुरुष धर्म कर्म सब भूल जाता है, फिर भला वह मोक्ष मार्ग में प्रवृत्त कैसे हो सकता है ? इसलिये मद्यका त्याग करना हा आत्माका कल्याण करनेवाला है।
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