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जैन-दर्शन
[६४ गथा ३४३४४४५४१०x१०x१८०००। इनको मुनिराज यथामाध्य यथाशक्ति पालन करते हैं।
चौरामी लाख योनियों के भेद * नित्य निगोद की सात लाख इतर निगोद को
__सात लाख पृथ्वी कायिक की सात लाख अपकायिक की सात लाख वायु कायिक की सात लाख अग्नि कायिक, की सात लाख दो इन्द्रिय
दो लाख ते इन्द्रिय
दो लाख चौ इन्द्रिय
दो लाख दस लाख चार लाख
चार लाख तिर्यच चार लाख
चौदह लाग्ब
विकल चरित्र ऊपर जो कुछ सकल चारित्र का निरूपण किया है उसका एक देश पालन करना विकल चारित्र है। इस विकल चारित्र का
वनस्पति
नारकी
मनुष्य
* चौरासी लाख उत्तरगयों का नष्टोद्दिष्ट का नकशा अलग साथ में लगा हुया है।