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Orgam
सूखे हुए सारे सरोवर नीर आवश्यक जहां,
हा। दैवके ही रोषसे होती नहीं वर्षा वहाँ। तन धारियोंका विश्वमें जल-अन्न प्राणाधार है, जिसठौर दोनों ही नहीं उस और क्या आहार है?
हिम सन्ततिसेम्लान अतिशयदेख सुन्दर क्षेत्रको,
अतिकष्ट क्या होगानहीं बोलो।कृषकके नेत्रको। हा ! खेतकेही सूखते सूखी हृदय-आशा-लता, कहते नहीं बनती कभी दुर्दैवकी अदयालुता ।
लगती कभी सहसा भयंकर दुखदाई आग है,
करना तभी पड़ता विवश घर द्वार अपना त्यागहै। यों भस्म क्षणभरमें हुआ सामान सारा आगमें, लिखदी जगतकी आपदा किसने हमारे भागमें ।
तव घर न घाहरके रहे पूरे रजकके श्वान हैं,
यस तुच्छ भिक्षापर यहां टिकते हमारे प्राण है। फिर धर्मसे नितके लिये भी वन्दना करना पड़ी, हम मिल गये पहिनी जहांपर सान्त्व वचनोंकी लड़ी