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REAST
मैत्री।
संसार भरके प्राणियोंसे श्री हमारी मित्रता, सद्भांति यह सब जानते थे 'कष्टप्रद है शत्रुता'। मरना सभीको एक दिन रहना नहीं संसारमें, की जाय फिर क्यों दुष्टता इम लोकके व्यवहारमें?
प्रमोद । होता रहा पुलकित सकलतनु सजनोंके दर्शसे,
सम्मान सब करते रहे उनका हृदयके हर्षसे। थी दृष्टि अवगुणपर नहीं हम तो गुणोंको देखते, करके उचित प्रतिपत्ति उनकी भाग्यथे निजलेखते
कारुण्य । करना अनुग्रह दीनजन पर यह महीका कार्य था, जिसके हृदय करुणा नथी वह आर्य एक अनार्य था धनवानसे ले रंकतक संसारमें सब ही दुखी, रहती यही थी भावना 'कैसे जगत होवे सुखी?'
माध्यस्थ। जो था हमारा शत्रु भी उससे न हमको द्वैष था,
१ सम्मान।