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होते न यदि ये ग्रन्थ तो रहत्ते सभी अज्ञानमें, इस जीवका आता न लक्षण भी किसीके ध्यानसें। षड् द्रव्य जगमें कौनसे हम जान सकते थे नहीं, इस जीवका अस्तित्व मानव मान सकते थे नहीं
अध्यात्म ग्रन्थ। अध्यात्म विद्याके विपुल सद् ग्रन्थ जितने हैं यहां,
अहा ! अन्यलोगोंके यहांपर ग्रन्थ उतने हैं कहां? जबतक न अपने रूपमें नल्लीन नर होता नहीं, तबतक न वह लवलेश भी हा! कर्मरज धोता नहीं अध्यात्म विद्याका प्रचारक ग्रन्थ 'प्रवचनसार है, बतला दिया उसने सकलमद, मोहही ससार है। करके जगतके कृत्य नर पड़ता स्वयं जंजालमें हा। मानता है देहको अपना यहां त्रयकालमें ।
प्राचार-ग्रन्थ। विस्तीर्ण इस साहित्यमें नहिं धर्म-ग्रन्थों की कमी,
कल्याणहित शुभ शान्त्र कितने रच गये हैं संयमी, 'अनगार धर्मामृत'नया सागार धर्मान्त' अहो ! 'श्री भगवनी आराधना से ग्रन्थ हैं किसमें कहो ?