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स्थितिकरण । मद,मोह,तृष्णावश मनुज जो धर्मसे गिरते हुये,
हमही उन्हें सन्मार्गमें स्थित पुनः करते हुये। स्थिति करणही देश अथवा धर्मका प्रिय अङ्ग है, इस अङ्ग घिन सर्वत्र हो प्रिय-धर्म होता भङ्ग है।
वात्सल्य । निज-बंधुओंपर ही हमारा निष्कपट अति प्यार था,
सुख दुःखमें निज धर्मियोंकाही बड़ा आधार था। उनसे सतत मिलकर हमें आनन्द होता था महा, संसारमें साधर्मियोंका प्रेम मिलता है कहाँ ?
प्रभावना। जिन धर्मकी महिमा प्रगट हम शक्तिभर करते रहे, बहु मूढ़ उसके तत्व जगके सामने धरते रहे। आडम्बरोंसे धर्मकी होती न बढ़वारी कभी, इम यातको अच्छी तरहसे जानते थे हम मभी।
हमारी विद्या। माता मदा बह गनु है परी जनक जगमें बही,