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श्रीपार्श्व१ प्रभुपर दैत्यने कितना उपद्रव था किया,
साक्षात् हा! उसने प्रलयका दृश्य था दिखला दिया नाची पिशाचनी भीम वदना मेघसे ओले पड़े,
सहते हुये उपसर्ग सब कनकाद्रिश्वत् प्रभु थे खड़े। यो देख जीवक३ को विपिनमें बोलती विद्याधरी, 'पाणिग्रहण मेरा करो मैं हूँ अलौकिक सुन्दरी'। उस काल क्या उत्तर दिया पाठक ! उसे सुन लीजिये मैं तो तुम्हारा बन्धु सम भगिनी न इच्छा कीजिये
१ यद्न्दुर्जितधनौध मदभ्रमीम भ्रश्यत्तडिन्मुसलमासलघोर धारम् । दैत्येन मुक्तमथदुस्तरवारिध्र, तेनैव तस्य जिनदुस्तरवारिकृत्यम् ॥१॥ ध्वस्तो केशविकृताकृतिमय॑मुण्ड ।
मालम्बभृन्यवक्त्रविनियंदग्निः ।। प्रेतत्रजः प्रतिभवन्तमपीरितो यः। सोऽस्या भवत्प्रतिभवं भवदुःखहेतुः ॥२॥
(श्रीकल्याण मन्दिर स्तोत्र ) २ सुमेरु पर्वत।
३ जीवन्धर कुमार क्षत्रिय पुत्र थे। एक वैश्यके यहां पालन पोषण हुआ था। कुमार वाल्यकालसे ही अत्यंत तेजस्वी थे। विद्याभ्यास पूर्ण होनेपर गुरुने इनसे कहा "तुम क्षत्रिय वीर हो, तुम्हारे पिताको मार करके काष्टांगारने राज्य ले लिया है। यह