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गुणगान सुनकरके किसीसे तुम मुदित होते नहीं, निजवाच्यतासे भी कभी तुमतो दुखित होते नहीं। इन कर्म रिपुओं ने प्रभो स्वातंत्र्य मेरा हर लिया, रक्षा करो! रक्षा करो। इनसे अहित जाता किया।
श्रीनमिनाथ । हे नेमिनाथ, पवित्र तुम सम्पूर्ण गर्व विहीन हो, संसारको सद्बोध देनेमें अतीव प्रवीन हो। अब तो तुम्हारी ओर ही यह झुक रहा अन्तःकरण, लाके दया अपने हृदयमें मेटियेगा भव-भ्रमण ।
१२५ जिससे न जगमें घूमना हो युक्ति वह पतलाइये,
यह मोहका पर्दा हमारा आप शीघ्र हटाइये । होते हुये भी नेत्रके हम आज अन्धे बन रहे, सन्मार्गको हम छोड़कर उन्मार्ग हीमें चल रहे ।
श्रीपार्श्वनाथ । जिस शक्तिसे दैत्येन्द्रका उपसर्ग प्रभु तुमने सहा,
फरफे दया यह शक्ति कुछ भी दीजिये हमको अहा! यह विश्वमें विख्यात है हम तो तुम्हारे दाम है, फिर भी अपार अनन्त भीपण साह रहे क्यों नास हैं?