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निज वीरतासे मोहकी सष सैन्य दी तूने भगा,
कल्याण करनेके लिये निशिदिन रहाप्रभुवर जगा। गुण सिन्ध,जगवान्धव,अकारण सर्वदा निष्पाप है, कृत्कृत्य जगसे हो चुके बाकी न कार्य कलाप है।
श्रीमुनिसुव्रतनाथ। प्रभु! आपका यश फैलता है आज भी संसारमें,
होती नहीं है कौन सी शुभ शक्ति भी उपकारमें। निज नाथ माना था जगतके पूज्य मुनियोंने तुम्हें,
तबसे जगत कहने लगा अनगारका नायक तुम्हें। अविचल,अवाधित,जग दिवाकर आपही अम्लान हो,
हो तत्त्वरूप, दयानिकेतन आप सर्व प्रमाण हो। चिन्तामणी चिन्मय तुम्हीं चारित्रके आगार हो, हो कष्टके हर्ता तुम्ही ही सर्वदा अविकार हो।
श्रीनमिनाथ। नमिनाथ! निर्मल आपकी वाणी सदानिर्दोष है, तेरा हृदय ही लोकमें अनुपम गुणोंका कोष है। अपरागता प्रतिमा तुम्हारी ही स्वयं करता प्रगट, निर्भीक होक्योंकि नहीं है शस्त्रभीत्तय सन्निकट।