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ज्ञान,तप,संयम,नियम जिनको सुहृद् सुखकार है, उन साधुओंकी पन्दना करता जगत शतबार है।
प्रस्तावना होंगे सजग सबही मनुज पढ़कर हमारी भारती,
पाषाण भी होगा द्रवित सुनकर हमारी भारती। सोये हुये निर्जीवसे उनको जगायेगी यही,
सन्मार्ग विमुखोंको सदा पथमें लगायेगी यही । जो सड़ रहे हैं खेदसे आलस्यकी ही गोदमें, पढ़कर इसे वे नर सदा हंसते फिरेंगे मोदमें । होगा इसीसे ज्ञात सब क्या २ हमारा होगया ?
सुविशाल इस भण्डारमेंसे रत्न क्या २ खो गया । यह काल वर्तन शील है या फिर न बदलेगा किसे ?
पर कालको देता बदल जो 'वीर' कहते हैं उसे । नित दैवको ही दोष देना कायरोंका काम है,
यो शूल धोनेसे कभी उगतान सुन्दर आम है। रविके निकलते ही मनोहर फैलता सुप्रभात है, छिपता प्रतापी सूर्य जब होती भयंकर रात है। हैं आज जो धनवान वे धनवान नित रहते नहीं, जो रंक है वे सर्वदा ही रंक तो रहते नहीं।