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जैन-भारती है
मंगलाचरणा । कार्यके आरम्भमें भगवानकी जय बोलिये,
अन्तःकरणके दृढ़ कपाटोंको सहज ही खोलिये। प्रत्येक हृदयोंमें सतत जगदीश ही रहने लगें, उनके लिये सद्भक्तिकी नदियां सरस पहने लगे।
शास्त्र जिस सांद्रतमपर सूर्यशशिकी भी नहीं चलतीमती,
हे शारदे ! पलमात्रमें तू ही उसे संहारती।' जिनराज-निर्मल-मृदुसरोवरकीअलौकिक पद्मिनी, होता न किसका चित्तहर्षित देख तव शोभा घनी
जो साधु सदुपदेश रूपी मेघ बरसाते यहाँ , जो भव्य रूपी चातकोंको तुष्ट करते हैं यहां ।