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वह सार्वभौमिकता कहां है आज प्यारे धर्मकी,
हत्या करो मत भूल करके सद्धर्मके शुभ ममकी। नैया तुम्हारे हाथ है उसको डुबा दोगे कहीं, मुख भी दिखाने योग्य फिर जगमें रहोगे तुम नहीं।
सिद्धान्तको करते प्रगट होता तुम्हें संकोच है,
सोचो विचारोआपही वह अन्यवत् कव पोच है ? उत्साहसे उनको कहो क्यों तेजमें लाते नहीं, तुम पूर्वजोंकी नीतिको क्यों आज बिसराते सही।
हे विज्ञ! तुम संसार भरमें शास्त्रके विद्वान हो, फिर क्यों न तुमको जातिके हितका अहितका ज्ञानहो इस द्वेष तरुवरपर सदा ऐसे विषम फल आयेंगे, जिसको तुम्हारे धर्म-भाई खा स्वयं मर जायेंगे।
सुधारक। सुधरो स्वयं निज बन्धुओंको आप शीघ्र सुधार दो.
अभिमान अत्याचारको तुम खोजके संहार दो। निज बन्धुओंसे ही कभी कल्याण लड़नेने नही.
संसारमें कुछ लाभ तुमको व्यर्थ अड़नेमें नहीं।