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इस विश्व नभखगके सदा स्त्री-पुरुष दो पंख हैं, अपने सुरक्षित पंखसे उड़ते विहग निशङ्क हैं । गार्हस्थ- गाड़ी के अहो ! स्त्री पुरुष हैं दो चके, बस ! समचकोंसे ही सदा निर्विघ्न गाड़ी चल सके।
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जैसे सतत उनके हृदयपर आपका अधिकार है, ठीक उसी भांति उनका आप पर अधिकार है। समो कभी मत नारियोंको निज भवनकीस्वामिनी, किन्तु उनको मानिये बस निज हृदय अधिकारिणी ।
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गृहिणी गृहम् हि उच्यते न तु काष्ठसंग्रहको कहीं, शिक्षित प्रिया बिन लेश भी सन्तानकी उन्नति नहीं, शिक्षित बनाना नारिको अत्यन्त आवश्यक सदा, हा ! मूर्ख नारीसे सदनमें क्लेश बढ़ता सर्वदा ।
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शिक्षित यहां पर एक दिन सम्पूर्ण नारि समाज था, जगधीच श्रेष्ठ समाज यह हम मानवोंका ताज था । था अर्द्ध सिंहासन सदा पतिदेवका उनके लिये, ही उन देवियोंसे थे अधिक जाते किये।