________________
Program
२४६ हम तो कहानेके लिये अब ईशकी सन्तान हैं,
सप्राण मुखमंडल सभीके शव सदृशक्योंम्लान है। यदि इन हमारी नाड़ियों में पूर्वजों का रक्त है, तो शुरता, गंभीरतासे क्यों हृदय यह रिक्त है।
श्रीराम सोचो सह सके कब जानकी-अपमानको ?
वे शान्त स्थिर थे हुये हरकर दशाननके प्राणको। भारी सभामें कौरवों ने कष्ट कृष्णाको दिया, होके दुखी तब पांडवों ने नष्ट उनको कर दिया।
२४८ गुण्डे हमारी भगनियों की कर रहे घेइज्जती,
इन पापियोंकी बढ़ रही देखो यहां दूनी गती। कुछ दंड उनको दे सकें इतना न तनमें जोर है, अपराध हीनाके प्रति अनरीति होती घोर है।
२४४ अपने भवनमें नारियों को ही सतानेके लिये, संग्राम वीरोंसे अधिक उद्दीत होते हैं हिये । हा, देखते लोचन अभागे नारियों की दुर्दशा, पंढ्त्व आकरके कहांसे इस तरह मनमें घसा ।