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जिनकी सदा प्रतिमा जगत-भर पूजताहै प्रेमसे, तीर्थंकरों के नाम भी नहिं बोल सकते क्षेमसे। हा ! जीव कहते हैं किसे यह बड़ी ही बात है, निजधर्मका सिद्धान्त अब कुछ भीनहमको ज्ञात है।
हा! शास्त्रतकका नाम भी आता नहमको बाँचना,
आतान हमको सत्य और असत्यका भीजांचना। तत्वार्थ सूत्र अपूर्वको अधिकांश सूत्तरजी कहें, वे धर्मको भीतो अहो! अथ शुद्ध हा ! कैसे कहें।
विद्वान और अविज्ञको जब एक दिन मरना यहां,
रहता नहीं कोई अमर तप व्यर्थ है पढ़ना यहां। अशानियों के कार्य भी संसारमें रुकते नहीं, मनमें समझ करके यही हम ग्रन्थ पढ़ सकतेनहीं।
जो जनगण संसारमें तत्वान्वेषी थे खरे,
आँखें उपाहो देखलो वे आज अज्ञानी निरे। पों एक दिन मशान सागरमें ममीही लीन थे, महिं दीन धे विद्धान भी किम बातमें हम हीन ।