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करने की अत्यन्त आवश्यकता है । जन गृहस्थो को जब अपने धर्म सिद्धान्तो का ही ज्ञान नही है तो उनकी उनमें आस्था स्थिर कैसे रह सकती है ? उनकी स्थिति गली के एक कंकर की हैं जिसे ठोकर मार कर कोई भी व्यक्ति किसी दिशा में फेक सकता है।
स्वाध्याय प्रणाली को प्रसारित करने के लिये प्रोत्साहन अथवा पुरस्कार आदि का अवलम्बन करना चाहिये।
(ix) विज्ञान में दिलचस्पी:
इस विषय में हमारे बालको को अधिक से अधिक क्रियाशील होना चाहिये । जैन धर्म वैज्ञानिक ढंग को अपनाता ही है । जैन सिद्धात मे कुछ ऐसे तथ्य भ रे पडे है कि यदि उनकी खोज की जाये तो कई चमत्कारिक रहस्य उद्घाटित हो सकते है । 'परमाणु' तथा 'आकाश' के बारे मे तो जैन धर्म ने विशेष उपयोगी विचार दिये है जो आजकल के वैज्ञानिकों के लिये बडे काम की वस्तु है ।
(x) पुनः क्षात्र तेज की प्राप्ति अयवा सेना में प्रवेश:हमें अपने क्षात्र तेज को पुनः जागृत करना होगा । जैन वीर सेनापति 'चामुण्ड राय' और 'आभू' की याद ताजा करनी होगी। जैन सम्राट् खारवेल की मोर्चाबदियो, सैन्य-संचालन, रण-कौशल, कर्तव्यशीलता, प्रजावत्सलता आदि गुणो को अपनाना होगा । प्रत्येक जैन श्रावक को यह स्मरण रखना चाहिए कि वह धर्मनीति को अपनाते हुए भी राजनीति से अलग नही रह सकता क्योकि देश में शान्ति और समृद्धि होने पर हो धर्न की साधना तथा जीवन में सुख शान्ति सम्भव है । उसके बिना समाज का अस्तित्व कायम नहीं रह सकता औ र अन्य जातियो के मुकाबले में वह नि:सहाय, कमजोर, अशक्त माना जायेगा। अगर जैन श्रावक यह समझता है कि धन-बल