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हाथ में रखी जाये ? (ऊ) महावीर का विवाह-सम्बन्ध हुआ था या नही इत्यादि ।
जिस सम्प्रदाय की जो आस्था है वह उसका पूर्णतया पालन करे, परन्तु खण्डन-मण्डन अथवा वाद-विवाद के कुचक्र में न पडे । आग्रहवाद का त्याग किया जाये । स्याद्वाद तथा अनेकांतवाद को प्रतिष्ठित किया जाये और शुरूपात अपने से ही की जाये। "खण्डन नीति' को निरुत्साहित किया जाये और 'एकता' पर बल दिया जाये ।
'एकता की आवाज बुलंद करने वालो को जैन समाज विशेष सम्मानित व पुरस्कृत करे । इस उद्देश्य के लिये युवा-पीढ़ी की ओर जनमत तैयार किया जाये।
वर्ष-भर मे 'जैन धर्म की एकता' पर एक-दो स्थानीय, प्रांतीय तथा केन्द्रीय समारोह व्यवस्थित किये जाये।
आकाशवाणी से जैन पुण्य तिथियों पर 'जैन एकता' सम्बन्धी 'वार्ता' प्रसारित की जाये । इस विषय पर शिक्षा संस्थानो में निबन्ध व भाषण प्रतियोगिताए व्यवस्थित की जायें।
(ii) अंतर्जातीय विवाह प्रथाः
अग्रवाल, प्रोसवाल, खण्डेलवाल, पल्लीवाल, दिगम्बर,श्वेताम्बर स्थानकवासी, तेरापथी आदि अनेक जैन वर्ग आपस मे विवाह-सम्बध स्थापित करें। विचारो की स्वतत्रता में हस्तक्षेप न किया जाये। भगवान् के केवल व्यापक मूल सिद्धान्तों-जैसे अहिंसा आदि-के पालन पर ही बल दिया जाये । इससे विषमता घटेगी, प्रेम बढ़ेगा, एक दूसरे के निकट आने का अवसर मिलेगा और यथार्थ धर्म की उन्नति होगी।