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भारत के प्रधान मंत्री थे। सन् 1954 से पूर्व मी भारत के समस्त जैनियों ने प्रतिवर्ष उनको सेवा में कागजी रेजोल्यूशन भेजकर तथा प्रतिनिधि मण्डल उनकी सेवा में उपस्थित करके, हजार धनुनय-विनय की थी कि भगवान् महावीर स्वामी, जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर, जिन्होंने भारत ही नही वरन् समस्त विश्व को 'सत्य मौर अहिंसा' का प्रशस्त मार्ग दिखाया, उनके जन्म दिन चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को भारतवर्ष में गजेटिड (राजपत्रित) छुट्टी घोषित की जाये ।
इसमें सदेह नहीं कि पण्डित नेहरू जैन धर्म व जैन समाज का मादर करते थे परन्तु उन्होंने आजन्म जैनियों के इस छुट्टी के प्रस्ताव को कभी कोई महत्व नहीं दिया और न ही भगवान् महावीर के जन्मदिन की छुट्टी कमी घोषित की।
दिल्ली जैन समाज ने गांधी ग्राऊन्ड में तथा नई दिल्ली में कई बार 'महावीर जयन्ती' के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसाद तथा प्रधान मंत्री पण्डित नेहरू जी को आमंत्रित किया, उनका फूल मालाओं से स्वागत किया और बड़े श्रादरपूर्वक अपनी पुरानी विनती को दोहराया, परन्तु तूती की आवाज नक्कारखाने में कौन सुनता है ?
पुन:, जब उपर्युक्त बहुचर्चित प्रस्ताव लेकर समग्र भारत के जैनियो का प्रतिनिधिमण्डल श्री नेहरू को उनके निवास स्थान पर मिला तो उस समय पण्डित जी ने प्रसन्न मुद्रा मे उपस्थित विदेशी राजनीतिज्ञों को सम्बोधित करते हुए कहा:
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'कि भारतवर्ष में यही (जैन समाज) एक ऐसा अहिंसक बर्ग है जिससे भारत सरकार को कोई भय या ख़तरा नही है'
यह शब्द जैन समाज की कमजोरी प्रदर्शित करते हैं या उसकी