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________________ भद्रबाहु के साथ हो लिये और 'जैन मुनि' बनकर आत्म कल्याण में लीन हो गए। प्राचीन जैन ग्रथ "तिलोयपण्णति" मे चन्द्रगुप्त को ही इस काल में अन्तिम मुकुटबद्ध राजा लिखा है जिसने जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की थी। वह श्रवणवेलगोल के स्थान पर ठहर गये थे। उन्होने यहां एक छोटी सी पहाड़ी पर एक गुफा मे तपस्या की थी, जिसे "चन्द्रगुफा" के नाम से पुकारते है। चन्द्रगुप्त का समाधिकरण भी यही हुआ था। बिंदुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात् साम्राज्य का उत्तराधिकारी उनका पुत्र बिदुसार बना जो "अमित्रघात' उपाधि से विख्यात हुआ। वह अपने पिता के समान वीर योद्धा था। जैन इतिहास में उसका नाम "वीर सेन' लिखा है, उसमें यह भी लिखा है कि बिंदुसार अपने पुत्र "भास्कर" (अशोक) के साथ श्रवणबेलगोल की ओर भ्रमण करने के लिये गया था। अशोक बिन्दुसार के पश्चात् मगध साम्राज्य की बागडोर "अशोक वर्द्धन' के हाथो में पाई । अपने पूर्वजों के समान अशोक भी अपने जीवन के प्रारम्भ काल मे "जैन धर्मानुयायी" था और उसने अपने पितामह (चन्द्रगुप्त) के समाधि स्थान श्रवणवेलगोल में कई एक स्मारक बनवाये थे । अपने जीवन में उसने लोक-कल्याण के लिए "सर्वमान्य दिशाओ" का प्रचार किया परन्तु बौद्ध साधुओं से प्रभावित होकर उसने बुद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। सारे जीवन में अशोक ने एक ही युद्ध किया और कलिंग विजय
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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