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दक्षिण को छोड़ चंद्रगुप्त शेष सारे भारत का सम्राट् बन गया। सिकदर की मृत्यु के पश्चात् उसके मुख्य सेनापति 'सेल्यूकस निकेटर' ने अपने स्वामी के पदचिन्हो पर चलकर ससार विजेता बनने की कुचेष्टा की। उसने समझा कि मैं भारत को रौद डालू गा । वह भारी दल-बल लेकर भारत की सीमाप्रो पर आ उपस्थित हुआ।
सम्राट चंद्रगुप्त का बल 'चरणक' पुत्र चाणक्य था। युद्ध मे भारतीय सैन्यसचालन इतने ऊ चे दर्जे का किया गया कि सेल्यूकस के लिए हार मानने के सिवा और कोई चारा न रहा।
भारतीय सभ्यता का सद्व्यवहार देखिये । सेल्यूकस को अपमानित नही किया गया। उसके साथ सधि की गई और केवल पजाब, गाधार (अफगानिस्तान आदि) जो पहले से भारत के इलाके माने जाते थे, वापिस लिये गये। और किसी इलाके की अपेक्षा नही की
प्रतीत होता है कि सेल्यूकस भारतीय सभ्यता के उच्च विचारों से प्रभावित हुआ । उसने चद्रगुप्त से पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए अपनी पुत्री का विवाह उससे करके, उसे अपना जामाता बनाने की इच्छा प्रगट की । चन्द्रगुप्त ने प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया। युद्ध और शत्रु ता का वातावरण प्रेम और प्रणय-सूत्र में परिवर्तित हो गया। चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस के सम्मानार्थ उसे ५०० हाथी भेट किये । दौत्य सम्बन्ध भी स्थापित किये गये । यूनानी राजदूत 'मेगस्थनीज' मौर्य-दरबार में रहा । इस मैत्री सम्बन्ध से दोनों देशो को बहुत लाभ पहुंचा।
चन्द्रगुप्त की इस महान् विजय पर इतिहास की दृष्टि से अवलोकन किया जाना चाहिए। इसके पूर्व सिकन्दर की भारत-विजय