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________________ है। इस प्रकार बीज और वृक्ष की तरह यह सिलसिला सनातन काल से चला आ रहा है। जीव कम करने में स्वतंत्र है। प्रश्न उठता है कि फल देने की शक्ति किसमें निहित है ? __ कोई मनुष्य शराब पीता है। नशा उत्पन्न करने के लिए शराब को किसी की सहायता नही चाहिए। दुग्ध-पान से शरीर मे शक्ति पाती ही है। भोजन करने से भूख मिटती ही है और जलपान से प्यास बुझती ही है। स्पष्ट है, इन पदार्थों को अपना फल देने के लिए किसी अन्य सहारे की तलाश नही करनी पड़ती। कर्म भी जड़ पदार्थ है। उनमे भी स्वय अपना फल प्रदान करने की शक्ति विद्यमान है। कर्म बध का प्रधान कारण मन और उसके सहायक वचन तथा काय (शरीर) एव कषाय है जिनका जिक्र पहले किया जा चुका है । आत्मा को स्वच्छ दीवार, कषायो को गोद और मन-वचन काय के योग को वायु मान लिया जाये तो कर्म बघ की व्यवस्था सहज ही समझ मे आ जायेगी। आत्मा रूपी दीवार पर जब कषायों का गोद लगा रहता है तो योग की आंधी से उडकर आई हुई कर्म-रूपी धूल चिपक जाती है । वही 'चिपक' जितनी सबल या निर्बल होगी, 'बध' उतना ही प्रगाढ़ या शिथिल होगा और धूल श्वेत या काली जैसी भी होगी वैसी ही चिपकेगी। हां, कषाय का गोंद यदि हट जाये और दीवार सूखी रह जाये तो धूल का आना जाना तो नही रुकेगा, किन चिपकना बद हो जायेगा। कर्म परमाणो का आना मन-वचन-काय की शक्ति प्रशक्ति पर निर्भर है। किन्तु बधन की तीव्रता-मंदता या चिपकना कषायों की कमी-बेशी पर निर्भर है ।
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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