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साधारणतया लेश्या का अर्थ मनोवृत्ति, विचार या तरंग हो सकता है किन्तु धर्माचार्यों ने 'कर्मश्लेष' के कारणभूत 'शुभाशुभ परिणामो' को ही लेश्या कहा है जिसे निम्न उदाहरण से छः भागों में विभक्त किया गया है।
एक ने कहा, "भई देखो, यह सामने एक विशाल जामुन का पेड़ है । आमो इसे काटकर धराशायी कर दे और मनचाहे फल खाए"।
दूसरा बोला, "सारा वृक्ष काटने से क्या लाभ ? केवल इसकी मोटी-मोटी फलदार शाखाएं ही काट लो।"
तीसरे ने जोर से कहा, "भाई समझदारी से काम लो। जिन टहनियो तक हाथ पहुंचता है केवल उन्हे ही काटो।
चौथे व्यक्ति ने गम्भीरता पूर्वक कहा, “भाइयो ! केवल फलो के गुच्छे ही तोड़ लो, टहनियो को हानि क्यों पहुँचाते हो ?" ___ पाँचवे ने अधिक सतर्क होकर कहा, "हमें तो चाहिए 'पके जामुन' वही क्यों न तोड़े ?" ___ छठे ने विचारपूर्वक सरल और शुद्ध मन से मार्गदर्शन करते हुए कहा, “सब लोग जरा बुद्धि से काम ले । आप सब लोग फल चाहते है तथा पके हुए फल चाहते है। ऐसे पके हुए फल तो नीची नजर से देखिए सैकड़ो की संख्या में पृथ्वी पर बिखरे हुए पड़े हैं । उन्हें बीन कर क्यो नही खा लेते ? भला वृक्ष को, डालियो को टहनियों को, गुच्छों को काटने तोड़ने की जरूरत क्या है ?"
उपर्युक्त विचारों के तारतम्य के आधार पर 'छः लेश्यामों का निम्न प्रकार से उद्भव होता है :कृष्ण लेश्या-मनोवृत्ति का निकृष्टतम रूप ।