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शिल्प-शाला, झोंपड़ी, सूना घर, श्मशान, वृक्ष मूल आदि स्थानों में ठहरते । वह साधना काल में समाहित हो गये। अपने आप में समा गये वह दिन रात यतमान रहते । उनका अन्तःकरण निरंतर क्रियाशील एवं प्रात्मान्वेषी हो गया।
महावीर ने पृथ्वी, पानी, अग्नि वायु, वनस्पति और चर-जीवों का अस्तित्व जाना। उन्हें सजीव मान कर उनकी हिंसा से विलग हो गये। ___ वह अप्रमत्त बन गये, दोषकारक प्रवृत्तियों से हटकर सतत् जागरूक बन गये।
ध्यान के लिये समाधि, यतना और जागरूकता सहज अपेक्षित हैं। महावीर ने नीद पर भी विजय पा ली। वह दिन रात का अधिक भाग खड़े रहकर ध्यान में बिताते । विश्राम के लिए थोड़ा समय लेटते तब भी नीद नही लेते थे। जब नीद सताने लगती तो फिर खड़े होकर ध्यान में लग जाते । कभी कभी तो सर्दी की रातों में घडियो तक बाहिर रहकर नीद टालने के लिये ध्यान मग्न हो जाते । __महावीर ने पूरे १२१ वर्ष के साधना काल में बहुत ही कम नीद ली। शेष सारा समय उनका ध्यान और जागरण में बीता।
महावीर तितिक्षा की परीक्षा-भूमि थे। दृष्टिविष फेकने वाला विकराल 'चण्डकोशिक सर्प' भी उनका कुछ न बिगाड़ सका, न उन्होने रोष किया और न ही वह विचलित हुए। वह समभाव में कायम रहे । अन्य वनले जीव जन्तुओं के उपसर्ग तो उनपर सारे साधनाकाल में होते रहे।
वह अधिकतर मौन रहते और जनता का कोप-भाजन बनते । वह कभी सक्षेप में उत्तर देते भी तो इतना कहते "मै भिक्ष हूं।"
महावीर एक अपूर्व साधक थे । वह कष्टो को निमंत्रित करते थे